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मेरा गांव मुझसे छूट गया।

मेरा गांव मुझसे छूट गया, एक ऐसा बंधन टूट गया, जिस बंधन में सपने अनेक, उन सपनों को कोई लूट गया, मेरा गांव मुझसे छूट गया..... वो दिन भी क्या थे बचपन के, जब बागों में सब मिलते थे, पतझड़-पुनीत, ऋतु-बसंत सब, यू आया जाया करते थे, मुझसे यह सब अब रूठ गया, मेरा गांव मुझसे छूट गया........ वह बचपन का सुकून कहां ? वह बचपन का जुनून कहां ? जरूरतें अब खून की प्यासी हैं, जीवन में बड़ी उदासी है, चिंताओं के इस सागर में, मैं धीरे-धीरे डूब गया। मेरा गांव मुझसे छूट गया........ है दर्द बहुत इस सीने में, अब नहीं मजा वह जीने में, जब जीते थे आजाद हुए, हम आसमान के नगीने में, बहता पानी सब सूख गया, मेरा गांव मुझसे छूट गया......                        कवि - शोभित उपाध्याय                          #sku arts